जाईफुल रामायण : कवि मनोहर मेहेर
*
JAAIPHULA RAMAYANA
By : Poet Manohar Meher
(Included in 'Manohar Daņđa-Nāţa' Section of 'Manohar Granthāvalī'.)
गरुड़ य़हुँ अइले, नाग-गण पळाइले ।
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JAAIPHULA RAMAYANA
By : Poet Manohar Meher
(Included in 'Manohar Daņđa-Nāţa' Section of 'Manohar Granthāvalī'.)
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Other Link :
http://hkmeher.blogspot.in/2009/11/manohar-meher-jaiphula-ramayana.html
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'Jāīphula Rāmāyaņa' is an Oriya Lyrical composition written by Poet Manohar Meher (1885- 1969). The Poet is regarded as 'Gaņa-Kavi' or 'Pallī-Kavi' of Western Orissa. This small book is based on t he story of Rāmāyaņa with a brief presentation in 'Daņđa-Nāţa’ style. It concisely describes all the subject matter of Rāmāyaņa starting from the birth of Rāma till his ascending throne of Ayodhyā after killing of demon-king Rāvaņa. The story ends with the happy reign of King Rāma.
Other Link :
http://hkmeher.blogspot.in/2009/11/manohar-meher-jaiphula-ramayana.html
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'Jāīphula Rāmāyaņa' is an Oriya Lyrical composition written by Poet Manohar Meher (1885- 1969). The Poet is regarded as 'Gaņa-Kavi' or 'Pallī-Kavi' of Western Orissa. This small book is based on t he story of Rāmāyaņa with a brief presentation in 'Daņđa-Nāţa’ style. It concisely describes all the subject matter of Rāmāyaņa starting from the birth of Rāma till his ascending throne of Ayodhyā after killing of demon-king Rāvaņa. The story ends with the happy reign of King Rāma.
Here the word
'Jāīphula' (Jātī Flower) has been used as the symbol of Mundane Soul.
The story is
a conversation between Goddess Pārvatī and God Śiva and Śiva narrates
the Rāmāyaņa
story before Pārvatī .
Originally this Book has been named as 'Daņđa-Nāţa Jāīphula
Rāmāyaņa' .
It has gained wide popularity in Orissa in the Oriya Folk Dance
called 'Daņđa-Nāţa'.
It has been discussed by several critics and litterateurs of Oriya literature.
It has been discussed by several critics and litterateurs of Oriya literature.
Written in 1929, this book had its First Edition published by Arunodaya
Press, Cuttack in the same year 1929. Its 6th Edition was in 1947. Later on
many editions have come through different publishers of Cuttack and Brahmapur
in 1965, 1967, 1973, 1974, 1976,1977, 1978, 1980, 1982, 1985 and some later
years also.
Some other
books of the poet have also seen the light of the day through several
publications.
(Efforts are being made to publish 'Manohar Granthāvalī', Collection of all the writings of Poet Manohar Meher, My revered
Grandfather.)
Now 'Jāīphula Rāmāyaņa' is completely presented
below in Devanāgarī script for convenience of the general readers.
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दण्डनाट जाईफुल रामायण (ओड़िआ गीत)
रचयिता : कवि मनोहर मेहेर
('मनोहर ग्रन्थावळी'र 'मनोहर दण्डनाट' विभागरे अन्तर्गत)
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बन्दइँ श्रीगणनाथ, सदाशिब य़ार तात ।
कुङ्कुम घटिरु निज श्रीअङ्गरु, दुर्गादेबी कले जात ॥
जाईफुल रे ॥ (१)
आहे देव गणपति, घेन मोहर बिनति ।
सुप्रसन्न होइ पद दिअ कहि, मुहिँ अटेँ मूर्खमति ॥
जाईफुल रे ॥ (२)
बन्दइँ देबी शारळा, मम कण्ठे कर खेळा ।
न आसिला पदमान कहि दिअ, पद आसु अनर्गळा ॥
जाईफुल रे ॥ (३)
बन्दइँ काळी कपाळी, गळारे मन्दार-माळी ।
रणे मतुआळी रक्त पान करि, रङ्गे नाचु ढळि ढळि ॥
जाईफुल रे ॥ (४)
बन्दइँ सिंह-बाहिनी, महिषासुर-मर्द्दिनी ।
अभय-दायिनी बिपद-भञ्जनी, घेन मोहर दयिनी ॥
जाईफुल रे ॥ (५)
बन्दइँ मा मङ्गळाई, तो पादे जणाएँ मुहिँ ।
अमङ्गळ काळे तो नाम धइले, सर्ब मङ्गळ हुअइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६)
चइत्र आश्विन मास, पड़इ तो उपबास ।
एकमने नारी तोते पूजा कले, गर्भे देउ बाळ शिष्य ॥
जाईफुल रे ॥ (७)
कहे दीन मनोहर, मङ्गळा मा दया कर ।
दण्डनाट गीत कहिबाकु चित्त, बळिला आसि मोहर ॥
जाईफुल रे ॥ (८)
माल्याणी य़ेपरि फुल, गुन्थि निए माळ माळ ।
सेहिपरि मोर गळे उपहार, लम्बिथाउ माळ माळ ॥
जाईफुल रे ॥ (९)
महादेब उमासाइँ, ताङ्कु जणाउछि मुहिँ ।
मोहर बिपद थिले सदानन्द, अबश्य करिबे त्राहि ॥
जाईफुल रे ॥ (१०)
बड़ देउळरे हरि, सङ्गे बिजे हळधारी ।
मध्यरे सुभद्रा बिजे करिछन्ति, श्रीमुख चन्द्रमा परि ॥
जाईफुल रे ॥ (११)
ब्रह्मा बिष्णु महेश्वर, य़ेते दश दिगपाळ ।
सर्ब देबताङ्कु बन्दना करुछि, शिरे य़ोड़ि बेनि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (१२)
अजणा अपढ़ा मुहिँ, लेखिबाकु शक्ति नाहिँ ।
सात काण्ड रामायणर चरित, ठिके ठिके कहिबइँ ॥
जाईफुल रे ॥ (१३)
पार्वती आगे शङ्कर, कहे रामायण सार ।
सरय़ू गङ्गार तटरे अय़ोध्या, नामे अछि एक पुर ॥
जाईफुल रे ॥ (१४)
तहिँ दशरथ राजा, सुखे पाळन्ति परजा ।
कौशल्या कैकेयी सुमित्रा सहिते, ताङ्क तिनिटि भारिजा ॥
जाईफुल रे ॥ (१५)
अपुत्रिक राजा थिले, प्रभुङ्क करुणा बळे ।
ऋष्यशृङ्ग मुनि बरि आणि पुणि, य़ज्ञ बिधि आरम्भिले ॥
जाईफुल रे ॥ (१६)
य़ज्ञ चरु राजा घेनि, बाण्टि देले तिनि राणी ।
तिनि राणी ठारु चारि मूर्त्ति धरि, जन्मिले कोदण्ड-पाणि ॥
जाईफुल रे ॥ (१७)
बाल्य काळे चापधारी, ताड़का असुरी मारि ।
शिब धनु भाङ्गि सीता बिभा हेले, पर्शुराम दर्प हरि ॥
जाईफुल रे ॥ (१८)
मन्थरा बोले कैकेया, राजा आगे कला माया ।
दशरथ आगे सत्य कराइला, नृप न जाणिले ताहा ॥
जाईफुल रे ॥ (१९)
राम राजा हेबा शुणि, रुषिला कैकेयी राणी ।
भ्रत राजा हेउ राम बन य़ाउ, एतिकि मोर मागुणि ॥
जाईफुल रे ॥ (२०)
राजा सनमत कले, भरतकु राज्य देले ।
श्रीराम लक्ष्मण सीता तिनि जण, बनबासे चळिगले ॥
जाईफुल रे ॥ (२१)
य़हुँ राम गले बन, राजा कले दुःख मन ।
पुत्र न देखिले पराण तेजिले, दशरथ नृपराण ॥
जाईफुल रे ॥ (२२)
पञ्चबटी करि कुटी, राम दिन नेले काटि ।
सूर्पणखा नारी देखि चापधारी, नाक कान देले काटि ॥
जाईफुल रे ॥ (२३)
तहुँ से असुरी गला, खर दूषणे कहिला ।
जाणि तिनि भाइ आसिलेक धाइँ, राम-हस्ते प्राण गला ॥
जाईफुल रे ॥ (२४)
अति बेगे चळि गला, लङ्का गड़े प्रबेशिला ।
श्रीराम चरित सकळ बृत्तान्त, राबण आगे कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (२५)
('मनोहर ग्रन्थावळी'र 'मनोहर दण्डनाट' विभागरे अन्तर्गत)
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बन्दइँ श्रीगणनाथ, सदाशिब य़ार तात ।
कुङ्कुम घटिरु निज श्रीअङ्गरु, दुर्गादेबी कले जात ॥
जाईफुल रे ॥ (१)
आहे देव गणपति, घेन मोहर बिनति ।
सुप्रसन्न होइ पद दिअ कहि, मुहिँ अटेँ मूर्खमति ॥
जाईफुल रे ॥ (२)
बन्दइँ देबी शारळा, मम कण्ठे कर खेळा ।
न आसिला पदमान कहि दिअ, पद आसु अनर्गळा ॥
जाईफुल रे ॥ (३)
बन्दइँ काळी कपाळी, गळारे मन्दार-माळी ।
रणे मतुआळी रक्त पान करि, रङ्गे नाचु ढळि ढळि ॥
जाईफुल रे ॥ (४)
बन्दइँ सिंह-बाहिनी, महिषासुर-मर्द्दिनी ।
अभय-दायिनी बिपद-भञ्जनी, घेन मोहर दयिनी ॥
जाईफुल रे ॥ (५)
बन्दइँ मा मङ्गळाई, तो पादे जणाएँ मुहिँ ।
अमङ्गळ काळे तो नाम धइले, सर्ब मङ्गळ हुअइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६)
चइत्र आश्विन मास, पड़इ तो उपबास ।
एकमने नारी तोते पूजा कले, गर्भे देउ बाळ शिष्य ॥
जाईफुल रे ॥ (७)
कहे दीन मनोहर, मङ्गळा मा दया कर ।
दण्डनाट गीत कहिबाकु चित्त, बळिला आसि मोहर ॥
जाईफुल रे ॥ (८)
माल्याणी य़ेपरि फुल, गुन्थि निए माळ माळ ।
सेहिपरि मोर गळे उपहार, लम्बिथाउ माळ माळ ॥
जाईफुल रे ॥ (९)
महादेब उमासाइँ, ताङ्कु जणाउछि मुहिँ ।
मोहर बिपद थिले सदानन्द, अबश्य करिबे त्राहि ॥
जाईफुल रे ॥ (१०)
बड़ देउळरे हरि, सङ्गे बिजे हळधारी ।
मध्यरे सुभद्रा बिजे करिछन्ति, श्रीमुख चन्द्रमा परि ॥
जाईफुल रे ॥ (११)
ब्रह्मा बिष्णु महेश्वर, य़ेते दश दिगपाळ ।
सर्ब देबताङ्कु बन्दना करुछि, शिरे य़ोड़ि बेनि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (१२)
अजणा अपढ़ा मुहिँ, लेखिबाकु शक्ति नाहिँ ।
सात काण्ड रामायणर चरित, ठिके ठिके कहिबइँ ॥
जाईफुल रे ॥ (१३)
पार्वती आगे शङ्कर, कहे रामायण सार ।
सरय़ू गङ्गार तटरे अय़ोध्या, नामे अछि एक पुर ॥
जाईफुल रे ॥ (१४)
तहिँ दशरथ राजा, सुखे पाळन्ति परजा ।
कौशल्या कैकेयी सुमित्रा सहिते, ताङ्क तिनिटि भारिजा ॥
जाईफुल रे ॥ (१५)
अपुत्रिक राजा थिले, प्रभुङ्क करुणा बळे ।
ऋष्यशृङ्ग मुनि बरि आणि पुणि, य़ज्ञ बिधि आरम्भिले ॥
जाईफुल रे ॥ (१६)
य़ज्ञ चरु राजा घेनि, बाण्टि देले तिनि राणी ।
तिनि राणी ठारु चारि मूर्त्ति धरि, जन्मिले कोदण्ड-पाणि ॥
जाईफुल रे ॥ (१७)
बाल्य काळे चापधारी, ताड़का असुरी मारि ।
शिब धनु भाङ्गि सीता बिभा हेले, पर्शुराम दर्प हरि ॥
जाईफुल रे ॥ (१८)
मन्थरा बोले कैकेया, राजा आगे कला माया ।
दशरथ आगे सत्य कराइला, नृप न जाणिले ताहा ॥
जाईफुल रे ॥ (१९)
राम राजा हेबा शुणि, रुषिला कैकेयी राणी ।
भ्रत राजा हेउ राम बन य़ाउ, एतिकि मोर मागुणि ॥
जाईफुल रे ॥ (२०)
राजा सनमत कले, भरतकु राज्य देले ।
श्रीराम लक्ष्मण सीता तिनि जण, बनबासे चळिगले ॥
जाईफुल रे ॥ (२१)
य़हुँ राम गले बन, राजा कले दुःख मन ।
पुत्र न देखिले पराण तेजिले, दशरथ नृपराण ॥
जाईफुल रे ॥ (२२)
पञ्चबटी करि कुटी, राम दिन नेले काटि ।
सूर्पणखा नारी देखि चापधारी, नाक कान देले काटि ॥
जाईफुल रे ॥ (२३)
तहुँ से असुरी गला, खर दूषणे कहिला ।
जाणि तिनि भाइ आसिलेक धाइँ, राम-हस्ते प्राण गला ॥
जाईफुल रे ॥ (२४)
अति बेगे चळि गला, लङ्का गड़े प्रबेशिला ।
श्रीराम चरित सकळ बृत्तान्त, राबण आगे कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (२५)
सुबर्ण्ण मृग देखाइ, य़ति बेशे लङ्कासाइँ ।
पर्ण्णकुटी द्वारुँ सीता घेनि गला, पुष्पक रथे बसाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (२६)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, मृगभार कन्धे थोइ ।
पर्ण्णकुटी द्वारे अस्सि प्रबेशिले, सीतादेबी मठे नाहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (२७)
सीता-गुण गुणि राम, करन्ति अति कारुण्य ।
सङ्गे सउमित्रि प्रबोधि कहन्ति, न कान्द न कान्द राम ॥
जाईफुल रे ॥ (२८)
बन लता गिरि चाहिँ, पचारन्ति रघुसाइँ ।
के चोराइ नेला प्राणर बल्लभी, देखिथिले दिअ कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (२९)
तहुँ किछि दूर गले, जटायु पक्षी देखिले ।
सीताङ्क बारता कहिला से जटा, शुणि राम तोष हेले ॥
जाईफुल रे ॥ (३०)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, धीरे गले पथ बाहि ।
बाटरे शबरी देखिले श्रीहरि, तहिँ आम्ब फळ पाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३१)
चखा आम्ब फळ खाइ, केते दूर गले तहिँ ।
बाटरे कुक्कुट पक्षीकि भेटिले, सीता-बार्त्ता देला कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (३२)
पम्पा सरोबर कूळे, राम लक्ष्मण मिळिले ।
चहुआ चकोइ शाप देइ राम, तहुँ बेनि भाइ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (३३)
गउड़ गोष्ठरे य़ाइ, प्रबेशिले रघुसाइँ ।
बोइले गोपाळ दुध किछि दिअ, रत्न मुदि बन्धा नेइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३४)
गउड़े कहन्ति हसि, ए केउँ बृक्षे फळिछि ।
दुध देबुँ नाहिँ मुदि य़ाअ नेइ, स्वर्ण्ण कि अपूर्ब अछि ॥
जाईफुल रे ॥ (३५)
कहुछन्ति सीतापति, गउड़ बाउड़ जाति ।
गाई रखि बने बुल अनुक्षणे, न जाण धर्मर रीति ॥
जाईफुल रे ॥ (३६)
क्षुधारे मागिलुँ क्षीर, तुम्भे कल अनादर ।
आम्भ शाप घेन नोहिबटि आन, दुध होइब रुधिर ॥
जाईफुल रे ॥ (३७)
तुम्भ नारीमाने य़ाइ, मुण्डे दधि-भाण्ड बहि ।
बेश्या प्राय होइ बिकि बुलुथिबे, ए ग्राम से ग्राम होइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३८)
गोपाळे य़ोड़िले कर, आहे देब दया कर ।
देउअछुँ क्षीर सुकल्याण कर, घेन बिनति आम्भर ॥
जाईफुल रे ॥ (३९)
शुणि राम तोष हेले, गोपाळ-मुख चाहिँले ।
द्वापर य़ुगरे तुम्भर मन्दिरे, जन्म होइबुँ बोइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४०)
राम माल्यबन्त परे, बरषा काळे मिळिले ।
बक पक्षी ठारु बारता पाइण, ऋष्यमूके प्रबेशिले ॥
जाईफुल रे ॥ (४१)
बाळी डरे सुग्रीबर, लुचिथिला गिरि पर ।
पबनर सुत नाम हनुमन्त, सङ्गते अछइ तार ॥
जाईफुल रे ॥ (४२)
सुग्री हनुमान गले, राम लक्ष्मण भेटिले ।
सीताङ्क सङ्केत श्रीरामङ्कु देइ, पादे पड़ि जणाइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४३)
कहन्ति प्रभु श्रीराम, काहिँकि लुचिछ बन ।
शुणि सुग्रीबर बाळी सामाचार, कहिला बाळीर गुण ॥
जाईफुल रे ॥ (४४)
सुग्री सङ्गे हले मित, काण्डे बाळी कले हत ।
किष्किन्ध्या कटक अङ्गदकु देइ, धराइले पाट छत्र ॥
जाईफुल रे ॥ (४५)
किष्किन्ध्या काण्ड चरित, एहिठारे समापत ।
दीन मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे देइ चित्त ॥
जाईफुल रे ॥ (४६)
कैळास-शिखरे बसि, कहुछन्ति काशीबासी ।
सामबेदुँ जात रामायण ग्रन्थ, सुमने शुण सुकेशी ॥
जाईफुल रे ॥ (४७)
सुन्दरा काण्डर बाणी, शुण गो देबी भबानी ।
शुणिले मुकत होइब पबित्र, काळ न बाधिब प्राणी ॥
जाईफुल रे ॥ (४८)
बरषा काळ बञ्चिले, कपि-बळ सज कले ।
चारि दिगे दूत पठाइले राम, हनु लङ्कागड़ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (४९)
देखि ताकु लङ्कादेबी, बोइला तोते खाइबि ।
काहिँर मर्कट पशु ए कटक, तोते बाट न छाड़िबि ॥
जाईफुल रे ॥ (५०)
जाईफुल रे ॥ (२६)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, मृगभार कन्धे थोइ ।
पर्ण्णकुटी द्वारे अस्सि प्रबेशिले, सीतादेबी मठे नाहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (२७)
सीता-गुण गुणि राम, करन्ति अति कारुण्य ।
सङ्गे सउमित्रि प्रबोधि कहन्ति, न कान्द न कान्द राम ॥
जाईफुल रे ॥ (२८)
बन लता गिरि चाहिँ, पचारन्ति रघुसाइँ ।
के चोराइ नेला प्राणर बल्लभी, देखिथिले दिअ कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (२९)
तहुँ किछि दूर गले, जटायु पक्षी देखिले ।
सीताङ्क बारता कहिला से जटा, शुणि राम तोष हेले ॥
जाईफुल रे ॥ (३०)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, धीरे गले पथ बाहि ।
बाटरे शबरी देखिले श्रीहरि, तहिँ आम्ब फळ पाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३१)
चखा आम्ब फळ खाइ, केते दूर गले तहिँ ।
बाटरे कुक्कुट पक्षीकि भेटिले, सीता-बार्त्ता देला कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (३२)
पम्पा सरोबर कूळे, राम लक्ष्मण मिळिले ।
चहुआ चकोइ शाप देइ राम, तहुँ बेनि भाइ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (३३)
गउड़ गोष्ठरे य़ाइ, प्रबेशिले रघुसाइँ ।
बोइले गोपाळ दुध किछि दिअ, रत्न मुदि बन्धा नेइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३४)
गउड़े कहन्ति हसि, ए केउँ बृक्षे फळिछि ।
दुध देबुँ नाहिँ मुदि य़ाअ नेइ, स्वर्ण्ण कि अपूर्ब अछि ॥
जाईफुल रे ॥ (३५)
कहुछन्ति सीतापति, गउड़ बाउड़ जाति ।
गाई रखि बने बुल अनुक्षणे, न जाण धर्मर रीति ॥
जाईफुल रे ॥ (३६)
क्षुधारे मागिलुँ क्षीर, तुम्भे कल अनादर ।
आम्भ शाप घेन नोहिबटि आन, दुध होइब रुधिर ॥
जाईफुल रे ॥ (३७)
तुम्भ नारीमाने य़ाइ, मुण्डे दधि-भाण्ड बहि ।
बेश्या प्राय होइ बिकि बुलुथिबे, ए ग्राम से ग्राम होइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३८)
गोपाळे य़ोड़िले कर, आहे देब दया कर ।
देउअछुँ क्षीर सुकल्याण कर, घेन बिनति आम्भर ॥
जाईफुल रे ॥ (३९)
शुणि राम तोष हेले, गोपाळ-मुख चाहिँले ।
द्वापर य़ुगरे तुम्भर मन्दिरे, जन्म होइबुँ बोइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४०)
राम माल्यबन्त परे, बरषा काळे मिळिले ।
बक पक्षी ठारु बारता पाइण, ऋष्यमूके प्रबेशिले ॥
जाईफुल रे ॥ (४१)
बाळी डरे सुग्रीबर, लुचिथिला गिरि पर ।
पबनर सुत नाम हनुमन्त, सङ्गते अछइ तार ॥
जाईफुल रे ॥ (४२)
सुग्री हनुमान गले, राम लक्ष्मण भेटिले ।
सीताङ्क सङ्केत श्रीरामङ्कु देइ, पादे पड़ि जणाइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४३)
कहन्ति प्रभु श्रीराम, काहिँकि लुचिछ बन ।
शुणि सुग्रीबर बाळी सामाचार, कहिला बाळीर गुण ॥
जाईफुल रे ॥ (४४)
सुग्री सङ्गे हले मित, काण्डे बाळी कले हत ।
किष्किन्ध्या कटक अङ्गदकु देइ, धराइले पाट छत्र ॥
जाईफुल रे ॥ (४५)
किष्किन्ध्या काण्ड चरित, एहिठारे समापत ।
दीन मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे देइ चित्त ॥
जाईफुल रे ॥ (४६)
कैळास-शिखरे बसि, कहुछन्ति काशीबासी ।
सामबेदुँ जात रामायण ग्रन्थ, सुमने शुण सुकेशी ॥
जाईफुल रे ॥ (४७)
सुन्दरा काण्डर बाणी, शुण गो देबी भबानी ।
शुणिले मुकत होइब पबित्र, काळ न बाधिब प्राणी ॥
जाईफुल रे ॥ (४८)
बरषा काळ बञ्चिले, कपि-बळ सज कले ।
चारि दिगे दूत पठाइले राम, हनु लङ्कागड़ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (४९)
देखि ताकु लङ्कादेबी, बोइला तोते खाइबि ।
काहिँर मर्कट पशु ए कटक, तोते बाट न छाड़िबि ॥
जाईफुल रे ॥ (५०)
कोपे अञ्जनार बळा, चापोड़ाघात माइला ।
बर देला देबी श्रीराम-बान्धबी, य़ाइ खोज रे बाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (५१)
अशोक बने मिळिला, सीता सती ठाब कला ।
रत्न मुदि देइ सीताङ्क चरणे, पड़ि प्रबोधि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५२)
कहे बीर हनुमान, मागो ! स्थिर कर मन ।
राबणकु मारि तुम्भङ्कु उद्धरि, नेबे प्रभु रघुराण ॥
जाईफुल रे ॥ (५३)
तहुँ महाबीर गला, मधुबने प्रबेशिला ।
रम्भा-बने य़ेह्ने गज थिले तारे सेहिपरि मन्थिदेला ॥
जाईफुल रे ॥ (५४)
य़हुँ से पबन-बळा, मधुबन भाङ्गिदेला ।
राबणर आगे चार जणाइला, भो देब शिरी सरिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५५)
माङ्कड़ गोटिए आसि, मधुबने अछि पशि ।
निमिष मात्रके एते बड़ बन, टाण करे देला नाशि ॥
जाईफुल रे ॥ (५६)
कोपे राबण प्रज्वळि, इन्द्रजितकु हकारि ।
बोइला काहिँर माङ्कड़ आसिछि, आण ताकु बेगे धरि ॥
जाईफुल रे ॥ (५७)
शुणि इन्द्रजित गला, हनुकु बान्धि आणिला ।
अनेक प्रकारे माड़ मारि ताकु, लङ्कागड़े बुलाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (५८)
लाञ्जे बसन गुड़ाइ, तैळ ढाळि देले तहिँ ।
सकळ असुर एक ठाब होइ, लाञ्जे लगाइले जूइ ॥
जाईफुल रे ॥ (५९)
य़हुँ से अग्नि जळिला, हनु य़े उठि बसिला ।
राबण-जगती उपरे मारुति, ब्रह्म अग्नि लगाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (६०)
ए घर से घर होइ, हनु गला डेइँ डेइँ ।
शए क्रोश लङ्का सुबर्ण्णर पुर, तत्क्षणे देला पोड़ाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६१)
य़ेते पुत्र नाति घेनि, पळाइला बिंशपाणि ।
बोइला बिधाता कि दण्ड बिहिलु, माङ्कड़ हस्तरे आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६२)
कहे बीर हनुमान, शुण रे चोर राबण ।
सीता य़ोगुँ तोर सम्पत्ति सरिला, निश्चे लभिबु मरण ॥
जाईफुल रे ॥ (६३)
हनु लङ्कारु आसिला, श्रीराम पाशे भेटिला ।
भो प्रभु जगत-करता सीताङ्कु, देखिलि बोलि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (६४)
सीताङ्क सन्देश आणि, कहिला से कपिमणि ।
शुणि रघुनाथ राइ कपि-य़ूथ, सेतुबन्ध बान्धिलेणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६५)
सुबळया परबते, बिजे प्रभु रघुनाथे ।
तेड़े बड़ गिरि कम्पि य़ाउअछि, माङ्कड़-मानङ्क घाते ॥
जाईफुल रे ॥ (६६)
य़ूथ कपि-बळ पूरि, शाळ शिळ तरु धरि ।
खि खि खुँ खुँ राब शुभइ शबद, कम्पिय़ाए बसुन्धरी ॥
जाईफुल रे ॥ (६७)
कपि-बळ सङ्गे घेनि, चळिगले रघुमणि ।
लङ्कागड़े य़ाइ प्रबेश होइले, हनु अङ्गदङ्कु आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६८)
धर धर मार मार, काहिँ गला सीता-चोर ।
सिंहर घरणी शृगाळ कि आणि, जीबन थिब कि तार ॥
जाईफुल रे ॥ (६९)
चार जणाइला य़ाइ, शुण देब लङ्कसाइँ ।
कपि-बळ राइ य़ुझिबार पाइँ, आसुछन्ति य़ति दुइ ॥
जाईफुल रे ॥ (७०)
शुणि राबण उठिला, इन्द्रजितकु राइला ।
बोइला कुमर सैन्य सज कर, शत्रुकु न कर हेळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७१)
असुरे शुणि धाइँले, श्रीराम सङ्गे य़ुझिले ।
महाघोर रण होइला संग्राम, राम-हस्ते केते मले ॥
जाईफुल रे ॥ (७२)
देखि कोपे मेघनाद, कला महाघोर नाद ।
श्रीराम लक्ष्मण आगरे य़ाइण, लगाइला महाय़ुद्ध ॥
जाईफुल रे ॥ (७३)
केते मते कला रण, जिणि न पारिला पुण ।
नागफाश नेइ राबण-तनय, बान्धिला राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७४)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, नागफाशे बन्दी थाइ ।
बिनता-नन्दन गरुड़ङ्कु मने, सुमरणा कले तहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (७५)
जाईफुल रे ॥ (५१)
अशोक बने मिळिला, सीता सती ठाब कला ।
रत्न मुदि देइ सीताङ्क चरणे, पड़ि प्रबोधि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५२)
कहे बीर हनुमान, मागो ! स्थिर कर मन ।
राबणकु मारि तुम्भङ्कु उद्धरि, नेबे प्रभु रघुराण ॥
जाईफुल रे ॥ (५३)
तहुँ महाबीर गला, मधुबने प्रबेशिला ।
रम्भा-बने य़ेह्ने गज थिले तारे सेहिपरि मन्थिदेला ॥
जाईफुल रे ॥ (५४)
य़हुँ से पबन-बळा, मधुबन भाङ्गिदेला ।
राबणर आगे चार जणाइला, भो देब शिरी सरिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५५)
माङ्कड़ गोटिए आसि, मधुबने अछि पशि ।
निमिष मात्रके एते बड़ बन, टाण करे देला नाशि ॥
जाईफुल रे ॥ (५६)
कोपे राबण प्रज्वळि, इन्द्रजितकु हकारि ।
बोइला काहिँर माङ्कड़ आसिछि, आण ताकु बेगे धरि ॥
जाईफुल रे ॥ (५७)
शुणि इन्द्रजित गला, हनुकु बान्धि आणिला ।
अनेक प्रकारे माड़ मारि ताकु, लङ्कागड़े बुलाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (५८)
लाञ्जे बसन गुड़ाइ, तैळ ढाळि देले तहिँ ।
सकळ असुर एक ठाब होइ, लाञ्जे लगाइले जूइ ॥
जाईफुल रे ॥ (५९)
य़हुँ से अग्नि जळिला, हनु य़े उठि बसिला ।
राबण-जगती उपरे मारुति, ब्रह्म अग्नि लगाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (६०)
ए घर से घर होइ, हनु गला डेइँ डेइँ ।
शए क्रोश लङ्का सुबर्ण्णर पुर, तत्क्षणे देला पोड़ाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६१)
य़ेते पुत्र नाति घेनि, पळाइला बिंशपाणि ।
बोइला बिधाता कि दण्ड बिहिलु, माङ्कड़ हस्तरे आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६२)
कहे बीर हनुमान, शुण रे चोर राबण ।
सीता य़ोगुँ तोर सम्पत्ति सरिला, निश्चे लभिबु मरण ॥
जाईफुल रे ॥ (६३)
हनु लङ्कारु आसिला, श्रीराम पाशे भेटिला ।
भो प्रभु जगत-करता सीताङ्कु, देखिलि बोलि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (६४)
सीताङ्क सन्देश आणि, कहिला से कपिमणि ।
शुणि रघुनाथ राइ कपि-य़ूथ, सेतुबन्ध बान्धिलेणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६५)
सुबळया परबते, बिजे प्रभु रघुनाथे ।
तेड़े बड़ गिरि कम्पि य़ाउअछि, माङ्कड़-मानङ्क घाते ॥
जाईफुल रे ॥ (६६)
य़ूथ कपि-बळ पूरि, शाळ शिळ तरु धरि ।
खि खि खुँ खुँ राब शुभइ शबद, कम्पिय़ाए बसुन्धरी ॥
जाईफुल रे ॥ (६७)
कपि-बळ सङ्गे घेनि, चळिगले रघुमणि ।
लङ्कागड़े य़ाइ प्रबेश होइले, हनु अङ्गदङ्कु आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६८)
धर धर मार मार, काहिँ गला सीता-चोर ।
सिंहर घरणी शृगाळ कि आणि, जीबन थिब कि तार ॥
जाईफुल रे ॥ (६९)
चार जणाइला य़ाइ, शुण देब लङ्कसाइँ ।
कपि-बळ राइ य़ुझिबार पाइँ, आसुछन्ति य़ति दुइ ॥
जाईफुल रे ॥ (७०)
शुणि राबण उठिला, इन्द्रजितकु राइला ।
बोइला कुमर सैन्य सज कर, शत्रुकु न कर हेळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७१)
असुरे शुणि धाइँले, श्रीराम सङ्गे य़ुझिले ।
महाघोर रण होइला संग्राम, राम-हस्ते केते मले ॥
जाईफुल रे ॥ (७२)
देखि कोपे मेघनाद, कला महाघोर नाद ।
श्रीराम लक्ष्मण आगरे य़ाइण, लगाइला महाय़ुद्ध ॥
जाईफुल रे ॥ (७३)
केते मते कला रण, जिणि न पारिला पुण ।
नागफाश नेइ राबण-तनय, बान्धिला राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७४)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, नागफाशे बन्दी थाइ ।
बिनता-नन्दन गरुड़ङ्कु मने, सुमरणा कले तहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (७५)
गरुड़ य़हुँ अइले, नाग-गण पळाइले ।
फिटिला बन्धन श्रीराम लक्ष्मण, पुणि उठि य़ुद्ध कले ॥
जाईफुल रे ॥ (७६)
इन्द्रजित कुम्भकर्ण्ण, य़ेते थिले दुष्ट-गण ।
सकळ असुर गले य़मपुर, माइले राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७७)
राबणर दश मुण्ड, काटि कले खण्ड खण्ड ।
स्वर्गे देबगणे जयध्वनि कले, कम्पिला चौद ब्रह्माण्ड ॥
जाईफुल रे ॥ (७८)
बसुमती तोष हेला, देबताङ्क दुःख गला ।
लङ्का जय करि सीताङ्कु लभिले, प्रभु दशरथ-बळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७९)
राम-पादे बिभीषण, पशिला य़ाइ शरण ।
राबणर नारी नाम मन्दोदरी, आणि कले समर्पण ॥
जाईफुल रे ॥ (८०)
बिभीषण-शिरे पाट, बान्धिले कौशल्या-चाट ।
चन्द्र सूर्य़्य थिबा परिय़न्ते सुखे, भोग य़ा हे लङ्का-राट ॥
जाईफुल रे ॥ (८१)
रामचन्द्र सीता बेनि, कपि अङ्गद पाबनि ।
लङ्का कटकरु बाहुड़िले राम, भाइ भारिजाङ्कु घेनि ॥
जाईफुल रे ॥ (८२)
अय़ोध्या नगरे आसि, प्रबेशिले रघुशिषि ।
मातागणे पुत्र बधू देखि तोष, प्रजागण हेले खुसि ॥
जाईफुल रे ॥ (८३)
अय़ोध्यारे राम राजा, सुखे पाळिले परजा ।
भ्रत शत्रुघन लक्ष्मण सहिते, राम-पादे कले पूजा ॥
जाईफुल रे ॥ (८४)
हनु अङ्गद सुग्रीब, सुषेण आदि जाम्बब ।
मेलाणि मागिण किष्किन्ड्याकु गले, कहिलेटि सदाशिब ॥
जाईफुल रे ॥ (८५)
पार्बती बोलन्ति नाथे, कथाए पड़िला चित्ते ।
जाईफुल बोलि काहाकु कहन्ति, एहा कहिदिअ मोते ॥
जाईफुल रे ॥ (८६)
शुण देबी शाकम्भरी, कहिलुँ तोते बिचारि ।
जीब परमर भिन्नाभिन्न नाहिँ, तुम्भे आम्भे य़ेउँपरि ॥
जाईफुल रे ॥ (८७)
जीबकु य़े जाईफुल, सङ्गतरे कर तुल ।
साधुए जाणन्ति मूर्खे न बुझन्ति, पिण्ड ब्रह्माण्ड बिचार ॥
जाईफुल रे ॥ (८८)
उड़िले परम हंस, जीब गले तार पाश ।
पुरुणाकु छाड़ि नूआ गृह लोड़ि, आनन्दे करइ बास ॥
जाईफुल रे ॥ (८९)
रामायण सुधा-बारि, पिइ तोष शाकम्भरी ।
श्रीराम-चरित परम पबित्र, शुणि नरे य़ाअ तरि ॥
जाईफुल रे ॥ (९०)
खड़िआळ राज्य-बासी, सिनापालि-ग्रामबासी ।
उदन्ती नदीर पिइ सुधा-नीर, दिन सरु नाहिँ बसि ॥
जाईफुल रे ॥ (९१)
शुण साधु सुज्ञ नर, मो दोष थिले न धर ।
बैश्य मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे य़ोड़ि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (९२)
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जाईफुल रे ॥ (७६)
इन्द्रजित कुम्भकर्ण्ण, य़ेते थिले दुष्ट-गण ।
सकळ असुर गले य़मपुर, माइले राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७७)
राबणर दश मुण्ड, काटि कले खण्ड खण्ड ।
स्वर्गे देबगणे जयध्वनि कले, कम्पिला चौद ब्रह्माण्ड ॥
जाईफुल रे ॥ (७८)
बसुमती तोष हेला, देबताङ्क दुःख गला ।
लङ्का जय करि सीताङ्कु लभिले, प्रभु दशरथ-बळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७९)
राम-पादे बिभीषण, पशिला य़ाइ शरण ।
राबणर नारी नाम मन्दोदरी, आणि कले समर्पण ॥
जाईफुल रे ॥ (८०)
बिभीषण-शिरे पाट, बान्धिले कौशल्या-चाट ।
चन्द्र सूर्य़्य थिबा परिय़न्ते सुखे, भोग य़ा हे लङ्का-राट ॥
जाईफुल रे ॥ (८१)
रामचन्द्र सीता बेनि, कपि अङ्गद पाबनि ।
लङ्का कटकरु बाहुड़िले राम, भाइ भारिजाङ्कु घेनि ॥
जाईफुल रे ॥ (८२)
अय़ोध्या नगरे आसि, प्रबेशिले रघुशिषि ।
मातागणे पुत्र बधू देखि तोष, प्रजागण हेले खुसि ॥
जाईफुल रे ॥ (८३)
अय़ोध्यारे राम राजा, सुखे पाळिले परजा ।
भ्रत शत्रुघन लक्ष्मण सहिते, राम-पादे कले पूजा ॥
जाईफुल रे ॥ (८४)
हनु अङ्गद सुग्रीब, सुषेण आदि जाम्बब ।
मेलाणि मागिण किष्किन्ड्याकु गले, कहिलेटि सदाशिब ॥
जाईफुल रे ॥ (८५)
पार्बती बोलन्ति नाथे, कथाए पड़िला चित्ते ।
जाईफुल बोलि काहाकु कहन्ति, एहा कहिदिअ मोते ॥
जाईफुल रे ॥ (८६)
शुण देबी शाकम्भरी, कहिलुँ तोते बिचारि ।
जीब परमर भिन्नाभिन्न नाहिँ, तुम्भे आम्भे य़ेउँपरि ॥
जाईफुल रे ॥ (८७)
जीबकु य़े जाईफुल, सङ्गतरे कर तुल ।
साधुए जाणन्ति मूर्खे न बुझन्ति, पिण्ड ब्रह्माण्ड बिचार ॥
जाईफुल रे ॥ (८८)
उड़िले परम हंस, जीब गले तार पाश ।
पुरुणाकु छाड़ि नूआ गृह लोड़ि, आनन्दे करइ बास ॥
जाईफुल रे ॥ (८९)
रामायण सुधा-बारि, पिइ तोष शाकम्भरी ।
श्रीराम-चरित परम पबित्र, शुणि नरे य़ाअ तरि ॥
जाईफुल रे ॥ (९०)
खड़िआळ राज्य-बासी, सिनापालि-ग्रामबासी ।
उदन्ती नदीर पिइ सुधा-नीर, दिन सरु नाहिँ बसि ॥
जाईफुल रे ॥ (९१)
शुण साधु सुज्ञ नर, मो दोष थिले न धर ।
बैश्य मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे य़ोड़ि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (९२)
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(इति श्रीमनोहर मेहेर -बिरचित जाईफुल रामायण सम्पूर्ण्ण )
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(Here ends 'Jāīphula Rāmāyaņa' of Poet Manohar Meher.)
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(Here ends 'Jāīphula Rāmāyaņa' of Poet Manohar Meher.)
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