Friday, June 5, 2015

Sitakanta Bhajan * सीताकान्त-भजन : कवि मनोहर मेहेर

‘Sītākānta-Bhajan’ (Oriya Poem): 
Poet Manohar Meher
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सीताकान्त-भजन 
(रचयिता - कवि मनोहर मेहेर ) 
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सीताकान्त कोदण्डपाणि, 
बारे घेन दीन जन दयिनी । 
तुम्भ श्रीचरण 
न पाइ दर्शन 
थय नाहिँ चित्त  दिबा यामिनी ।। (0)   
***

बारि मध्ये थाइ बारण 
बारम्बार गला शरण । 
रथांग पेषिल 
अराति नाशिल 
बनपति-अरि  रखिल आणि ।। (1) 
***   

सूर्य्य-सुते होईल मित 
इन्द्र-सुत कल निपात । 
हर-अरि-प्रिया- 
तात तुम्भ माया 
न पाइले अन्त के पारे जाणि ।। (2) 
*** 

प्रभु क्षिति-सुताङ्क हेतु 
सिन्धु मध्ये बान्धिल सेतु । 
बन-सुत-सुत- 
सुत-नाति नाशि 
ता भ्राताकु देल ता योषामणि ।। (3) 
***  

भानु-वंशी कुल-शेखर 
भानु-सुत-भयुँ  उद्धर  । 
भव-भय हर 
आश्रित जनर 
नब पञ्च पुरे  अट कारेणि ।। (4)  
*** 

कञ्ज-नेत्र खण्ड दुरित,
मुहिँ तब भृत्यर भृत्य । 
दास अपराध    
छेद आदिकन्द 
कहे मनोहर योड़िण पाणि ।।  (5) 
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(" मनोहर पद्यावली " पुस्तकरु गृहीत ।)

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(Extracted from the Book ‘Manohar Padyavali’

Edited by Dr. Harekrishna Meher and published in 1985)


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