Saturday, May 7, 2016

‘Sri Samaleswari Janaana’ (श्रीसमलेश्वरी जणाण):Odia Poem by Poet Manohar Meher

‘Sri Samaleswari Janaana’
(A Prayer to Goddess Sambaleswari,
Odia Poem in Chautishaa Style)
Written By Poet Manohar Meher (1885-1969)  
*
Published by :
Dasarathi Pustakalaya, Balu Bazar, Cuttack-2, Odisha.   
First Edition : 1964  A.D. 
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* श्रीसमलेश्वरी जणाण *
रचयिता : कवि मनोहर मेहेर
(‘ठारुक्षवर्णक्रमे चौतिशा रीतिरे लिखित कविता
*
प्रकाशक : दाशरथि पुस्तकालय, बालु बजार, कटक-, ओड़िशा.
प्रथम संस्करण : १९६४ मसिहा
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श्रीसमलेश्वरी जणाण
(राग- खण्डिता)
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(क)      
कृताञ्जळि पुटे दीन  करुछि गुहारि,
कर सुकरुणा मागो  श्रीसमलेश्वरी
कञ्ज आखि  गो !
कृपा-नेत्रे चाहिँ कर सुखी  गो ()
*
()
खिळ ब्रह्माण्ड-धारिणी  क्षितिधर-जेमा,
खण्डिछ देबङ्क दुःख  जात होइ उमा
खळ मैषा  गो !
खरे नाशि उश्वासिल रसा  गो ()
*
()
गणेश-जननी मागो  गिरिराज-सुता,
गङ्गाधर-जाया फेड़  दुःखीजन चिन्ता
गलि भासि  गो !
गरिब गुहारि शुण आसि  गो ()
*
()
घनकेशी घन-रूपी  घनसार भूषा,
घर्घर-नादिनी घोर  रणे रक्त-शोषा
घण्टेश्वरी  गो !
घोर दुःख बिनाशन- कारी  गो ()
‍*
()
उमा कात्यानी गौरी  अपर्ण्णा पार्वती,
उपमा देबाकु नाहिँ  तब रूप कान्ति
उज्ज्वळाङ्गी  गो !
उरग-भूषण शिब सङ्गी  गो ()
*
()
चक्र त्रिशूळ  खड़ग  काति करे घेनि,
चढ़ि सिंह य़ाने मागो  करुछ भ्रमणि
चिन्तामणि  गो !
चउबर्ग बाञ्छा फळदानी  गो ()
*
()
छछन्दे सुदया य़ाकु  कर महामाये,
छाड़िय़ाए दुःख चिन्ता  सुखे दिन य़ाए
छिन्नमस्ता  गो !
छड़ अर्द्ध पुरे तुम्भे कर्त्ता  गो (
‍*
()
जगदम्बा नाम मागो  जगते प्रकाश,
जगत-जननी नाना  दुःख कर नाश
जगद्धात्री  गो !
जणाउछि घेन मो बिनति (
*
()
झीन रक्ताम्बर तब  श्रीअङ्गे शोभन,
झटझट शोभा पाए  शुभ श्रीबदन
झस-नेत्री  गो !
झाड़पति पृष्ठे कर गति  गो ()
*
()
नीळकण्ठ-प्रिया देवी  य़ाअ तुम्भे बुलि,
निशा-काळे  चण्डी चामुण्डाङ्क  तुले मिळि
नृत्य रङ्गे  गो !
निअ सहचरी बृन्द सङ्गे  गो (१०
*
()
टळटळ बदनी गो  टहटह हासी,
टेकिअछ भुज  सर्वजन हिते बसि
टाण हर  गो !  
टङ्कधर-प्रिया  कृपा कर  गो (११)
*
()
ठुळशून्यमयी मागो  शङ्कर-भाबिनी,
ठिके बेनि कर य़ोड़ि  करुछि दयिनी
ठाब दिअ  गो !
ठाकुराणी  निरिदय नुह  गो (१२)
*
()
डाळिम्ब-दशनी  मागो  डम्बरु-धारिणी,
डाकिनी प्रेत पिशाच  सङ्गे थाअ घेनि
डोळानेत्री  गो !
डराअ दुष्टङ्कु  भ्रमि रात्रि  गो (१३)
*
()
ढम मण मो गिर   ढाङ्कि रख हेळे,
ढळढळ-नयनी मा  तुम्भे दया कले
ढळे दुःख  गो !
ढाळे सुमङ्गळे  सुखे रख  गो (१४)
*
()
अष्टमी दिने आश्विने  होइल जनम,
अय़ोनि-सम्भूता दुर्गा  अभया  य़ा नाम
अमरङ्क  गो !
अबिलम्बे शुणिअछ डाक  गो (१५)
*
()
त्रिलोक-तारिणी मागो  बिपद-भञ्जनी,
त्रय बीज ब्रह्मा बिष्णु  शिब मूर्त्ति तिनि
तुम्भे थाइ  गो !
त्रिपुर रचिल महामायी  गो (१६)
*
(थ) 
थिर हेला मेदिनी मा  सृष्टि कल जात,
थाबर जङ्गम कीट  पतङ्ग सहित
थाणु कोळे  गो !
थाइ बिहरुछ  सर्बकाळे  गो (१७)
*
()
दशरथ-सुत चिन्ता  कले य़ेतेबेळे,
दया कल महामाया  ताङ्क दुःख काळे
देल बर  गो !
दण्डके नाशिले दशशिर  गो (१८)
*
()
धृतराष्ट्र-प्रिया सुमरणा कले मात,
धर्म बळे सेत शत  पुत्र कले जात
धरातळे  गो !
धने पूर्ण्ण बीरे गण्य हेले  गो (१९)
*
()
निर्मळ मनरे य़ेहु  पूजइ तुम्भङ्कु,
नाना दुःख नाश य़ाए  सुख मिळे ताकु
नेइ रख  गो !
निज पुत्र परि ताकु देख  गो (२०
*
()
परम बैष्णबी मागो  दुर्गति-तारिणी,
प्रसन्न-बदनी देबी  अभय-दायिनी
पङ्कजाक्षी  गो !
प्रार्थीजन कष्ट फेड़ देखि  गो (२१)
*
()
फिटाअ दुःख-बन्धन  ईश्वर-घरणी,
फुल्ल हार गळे लम्बे  अति सुमण्डनी
फेड़ क्लेश  गो !  
फुटिला कुसुम तनु बेश  गो (२२)
*
()
बसन्त चइत्र मासे  परब तुम्भर,
बन्दना तब पयरे  अनुकम्पा कर
बिरूपाक्षी  गो !
बिपत्ति बिनाशि कर सुखी  गो (२३)
*
(
भासि य़ाउथिले प्राणी  करिछ उद्धार,
भव भय-बिनाशिनी  महिमा अपार
भगवती  गो !
भाबे तुम्भ पादे थाउ मति  गो (२४)
‍*
()  
माता रूपे जगतरे  करुछ बिहार,
मानबे काहुँ चिह्निबे  स्वरूप तुम्भर
माहेश्वरी  गो !
माइल दर्पिष्ठ  दुष्ट धरि  गो (२५)
*
()  
य़ति तपमार्गे थान्ति  तुम्भ नाम ध्यायि,
य़ोगे पाबन्ति अन्त  ब्रह्मा बिष्णु केहि
य़ोगमाया  गो !  
य़े भजइ तारे कर दया  गो (२६)
*
()
रमणीङ्क मध्ये राजे  तुम्भ अग्र ध्वजा,
रम्य सम्बलपुररे  पाउअछ पूजा
राम-नेत्री  गो !
रसारे  उड़ुछि  तब कीर्त्ति  गो (२७)
*
()
लङ्कपति सेबा कले  लङ्का कटकरे,
लभिले बिपुळ सुख  तुम्भर कृपारे
लक्ष्मी हेतु  गो !
लोभ य़ोगुँ  हेला ताङ्क मृत्यु  गो (२८
*
()
वरज-कामिनीमाने  तुम्भङ्कु पूजिले,
विपिन-विहारी हरि  प्रमोदे लभिले
वृन्दावने  गो !
विहरिले सुखे रात्र दिने  गो (२९)
*
()
शङ्कर-मोहिनी मागो  श्रीसमलेश्वरी,
श्रद्धा चित्ते पूजे तुम्भ  नाम य़े सुमरि
शाकम्भरी  गो !
शुभे ताकु रख दया करि  गो (३०)  
*
()
षड़ानन-जननी  गो  हुअ बिमुख,
षड़ दश बाहु छाया तळे नेइ रख
शिशु छार  गो !
शरण पशुछि  त्राहि कर  गो (३१)
*
()
सुधांशु-बदनी मागो  सन्तान-दायिनी,
सुमङ्गळ काले  तुम्भे अट बरदानी
स्वर्ण्णगात्री  गो !
सौदामिनी परि तनु कान्ति  गो (३२)
*
()
हाटक मुकुट शिरे  दिशइ शोभन,
हेममय सिंहासने  राजिछ  य़तन
हरषरे  गो !
हरप्रिया  सम्बलपुररे  गो (३३
*
(क्ष)
क्षमाकर दोष मोर  मा समलेश्वरी,
क्षिति मध्ये तब य़श  क्षरे दुःख हरि  
क्षेम कर  गो !
क्षमे जणाउछि  मनोहर  गो (३४)
* * *
     श्री समलेश्वरी जणाण  सम्पूर्ण्ण   
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[Included in Manohar Chautisha Maalika : 'मनोहर च‌उतिशा माळिका' 
of 'Manohar Granthavali' yet to be published.]
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Kavi Manohar Meher : Profile : 
http://kavi-manohar-meher.blogspot.in/2010/04/kavi-manohar-meher.html 
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