‘Sri Samaleswari Janaana’
(A Prayer to Goddess
Sambaleswari,
Odia Poem in Chautishaa
Style)
Written By Poet Manohar
Meher (1885-1969)
*
Published by :
Dasarathi Pustakalaya, Balu Bazar, Cuttack-2, Odisha.
First Edition : 1964 A.D.
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* श्रीसमलेश्वरी जणाण
*
रचयिता : कवि
मनोहर मेहेर
(‘क’ ठारु
‘क्ष’ वर्णक्रमे चौतिशा
रीतिरे लिखित कविता)
*
*
प्रकाशक
: दाशरथि पुस्तकालय,
बालु बजार,
कटक-२,
ओड़िशा.
प्रथम
संस्करण : १९६४ मसिहा.
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श्रीसमलेश्वरी जणाण
(राग- खण्डिता)
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(क)
कृताञ्जळि पुटे दीन करुछि गुहारि,
कर
सुकरुणा मागो
श्रीसमलेश्वरी ।
कञ्ज
आखि गो !
कृपा-नेत्रे चाहिँ
कर सुखी
गो
॥ (१)
*
(ख)
खिळ
ब्रह्माण्ड-धारिणी
क्षितिधर-जेमा,
खण्डिछ
देबङ्क दुःख जात होइ उमा
।
खळ
मैषा गो !
खरे
नाशि उश्वासिल रसा गो ॥ (२)
*
(ग)
गणेश-जननी मागो गिरिराज-सुता,
गङ्गाधर-जाया फेड़ दुःखीजन चिन्ता ।
गलि
भासि गो !
गरिब
गुहारि शुण
आसि गो ॥ (३)
*
(घ)
घनकेशी
घन-रूपी घनसार भूषा,
घर्घर-नादिनी घोर रणे रक्त-शोषा
।
घण्टेश्वरी गो !
घोर
दुःख बिनाशन-
कारी गो ॥ (४)
*
(ङ)
उमा
कात्यायनी गौरी
अपर्ण्णा पार्वती,
उपमा
देबाकु नाहिँ तब रूप कान्ति
।
उज्ज्वळाङ्गी गो !
उरग-भूषण शिब सङ्गी
गो
॥ (५)
*
(च)
चक्र
त्रिशूळ
खड़ग काति करे घेनि,
चढ़ि
सिंह य़ाने
मागो
करुछ भ्रमणि
।
चिन्तामणि गो !
चउबर्ग
बाञ्छा फळदानी गो ॥ (६)
*
(छ)
छछन्दे
सुदया य़ाकु कर महामाये,
छाड़िय़ाए दुःख चिन्ता
सुखे दिन
य़ाए ।
छिन्नमस्ता गो !
छड़
अर्द्ध पुरे
तुम्भे कर्त्ता गो ॥ (७)
*
(ज)
जगदम्बा नाम मागो
जगते प्रकाश,
जगत-जननी नाना दुःख कर नाश
।
जगद्धात्री गो !
जणाउछि
घेन मो
बिनति ॥
(८)
*
(झ)
झीन
रक्ताम्बर तब श्रीअङ्गे शोभन,
झटझट
शोभा पाए शुभ श्रीबदन ।
झस-नेत्री
गो !
झाड़पति
पृष्ठे कर
गति
गो ॥
(९)
*
(ञ)
नीळकण्ठ-प्रिया देवी य़ाअ तुम्भे बुलि,
निशा-काळे चण्डी चामुण्डाङ्क
तुले मिळि
।
नृत्य
रङ्गे
गो !
निअ सहचरी बृन्द सङ्गे
गो ॥
(१०)
*
(ट)
टळटळ
बदनी गो टहटह हासी,
टेकिअछ
भुज
सर्वजन हिते
बसि ।
टाण
हर गो !
टङ्कधर-प्रिया कृपा कर गो ॥
(११)
*
(ठ)
ठुळशून्यमयी मागो शङ्कर-भाबिनी,
ठिके
बेनि कर
य़ोड़ि
करुछि दयिनी
।
ठाब
दिअ
गो !
ठाकुराणी निरिदय
नुह
गो ॥
(१२)
*
(ड)
डाळिम्ब-दशनी
मागो
डम्बरु-धारिणी,
डाकिनी
प्रेत पिशाच सङ्गे थाअ घेनि
।
डोळानेत्री गो !
डराअ
दुष्टङ्कु
भ्रमि रात्रि गो ॥ (१३)
*
(ढ)
ढम
न मण
मो गिर ढाङ्कि
रख हेळे,
ढळढळ-नयनी मा तुम्भे दया कले
।
ढळे
दुःख
गो !
ढाळे
सुमङ्गळे सुखे रख गो ॥
(१४)
*
(ण)
अष्टमी
दिने आश्विने
होइल जनम,
अय़ोनि-सम्भूता दुर्गा अभया य़ा नाम ।
अमरङ्क गो !
अबिलम्बे शुणिअछ डाक
गो ॥
(१५)
*
(त)
त्रिलोक-तारिणी मागो बिपद-भञ्जनी,
त्रय
बीज ब्रह्मा बिष्णु शिब मूर्त्ति तिनि ।
तुम्भे
थाइ
गो !
त्रिपुर रचिल महामायी
गो ॥
(१६)
*
(थ)
(थ)
थिर
हेला मेदिनी
मा सृष्टि कल
जात,
थाबर
जङ्गम कीट पतङ्ग सहित ।
थाणु
कोळे
गो !
थाइ
बिहरुछ सर्बकाळे गो ॥ (१७)
*
(द)
दशरथ-सुत चिन्ता कले य़ेतेबेळे,
दया
कल महामाया ताङ्क दुःख काळे
।
देल
बर गो !
दण्डके
नाशिले दशशिर गो ॥ (१८)
*
(ध)
धृतराष्ट्र-प्रिया सुमरणा
कले मात,
धर्म
बळे सेत
शत पुत्र कले जात
।
धरातळे गो !
धने
पूर्ण्ण बीरे
गण्य हेले गो ॥ (१९)
*
(न)
निर्मळ
मनरे य़ेहु पूजइ तुम्भङ्कु,
नाना
दुःख नाश
य़ाए
सुख मिळे
ताकु ।
नेइ
रख गो !
निज
पुत्र परि
ताकु देख गो ॥ (२०)
*
(प)
परम
बैष्णबी मागो दुर्गति-तारिणी,
प्रसन्न-बदनी देबी अभय-दायिनी ।
पङ्कजाक्षी गो !
प्रार्थीजन कष्ट फेड़ देखि गो ॥ (२१)
*
(फ)
फिटाअ दुःख-बन्धन ईश्वर-घरणी,
फुल्ल
हार गळे
लम्बे
अति सुमण्डनी ।
फेड़ क्लेश गो
!
फुटिला
कुसुम तनु
बेश
गो ॥
(२२)
*
(ब)
बसन्त
चइत्र मासे परब तुम्भर,
बन्दना
तब पयरे
अनुकम्पा कर ।
बिरूपाक्षी गो !
बिपत्ति बिनाशि कर सुखी गो ॥ (२३)
*
(भ)
भासि
य़ाउथिले प्राणी करिछ उद्धार,
भव
भय-बिनाशिनी महिमा अपार ।
भगवती गो !
भाबे
तुम्भ पादे
थाउ मति गो ॥ (२४)
*
(म)
माता
रूपे जगतरे करुछ बिहार,
मानबे
काहुँ चिह्निबे स्वरूप तुम्भर ।
माहेश्वरी गो !
माइल
दर्पिष्ठ दुष्ट धरि
गो ॥
(२५)
*
(य़)
य़ति
तपमार्गे थान्ति तुम्भ नाम ध्यायि,
य़ोगे
न पाबन्ति अन्त ब्रह्मा बिष्णु केहि
।
य़ोगमाया गो !
य़े भजइ तारे कर दया गो ॥ (२६)
*
(र)
रमणीङ्क मध्ये राजे
तुम्भ अग्र
ध्वजा,
रम्य
सम्बलपुररे
पाउअछ पूजा
।
राम-नेत्री
गो !
रसारे
उड़ुछि तब कीर्त्ति
गो ॥
(२७)
*
(ल)
लङ्कपति सेबा कले
लङ्का कटकरे,
लभिले
बिपुळ सुख तुम्भर कृपारे ।
लक्ष्मी हेतु गो !
लोभ
य़ोगुँ हेला ताङ्क मृत्यु
गो ॥
(२८)
*
(व)
वरज-कामिनीमाने तुम्भङ्कु पूजिले,
विपिन-विहारी हरि प्रमोदे लभिले ।
वृन्दावने गो !
विहरिले सुखे रात्र दिने गो ॥ (२९)
*
(श)
शङ्कर-मोहिनी मागो श्रीसमलेश्वरी,
श्रद्धा चित्ते पूजे तुम्भ नाम य़े सुमरि
।
शाकम्भरी गो !
शुभे
ताकु रख
दया करि गो ॥ (३०)
*
(ष)
षड़ानन-जननी
गो न हुअ
बिमुख,
षड़
दश बाहु
छाया तळे
नेइ रख
।
शिशु
छार
गो !
शरण
पशुछि
त्राहि कर
गो ॥
(३१)
*
(स)
सुधांशु-बदनी मागो सन्तान-दायिनी,
सुमङ्गळ काले तुम्भे अट बरदानी
।
स्वर्ण्णगात्री गो !
सौदामिनी परि तनु कान्ति गो ॥ (३२)
*
(ह)
हाटक
मुकुट शिरे दिशइ शोभन,
हेममय
सिंहासने
राजिछ य़तन ।
हरषरे गो !
हरप्रिया सम्बलपुररे
गो ॥
(३३)
*
(क्ष)
क्षमाकर दोष मोर
मा समलेश्वरी,
क्षिति
मध्ये तब
य़श क्षरे दुःख
हरि ।
क्षेम कर गो !
क्षमे
जणाउछि मनोहर गो ॥ (३४)
* * *
श्री
समलेश्वरी जणाण
सम्पूर्ण्ण
।
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[Included in Manohar Chautisha Maalika : 'मनोहर चउतिशा माळिका'
of 'Manohar Granthavali' yet to be published.]
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