‘Sītākānta-Bhajan’ (Oriya Poem):
सीताकान्त कोदण्डपाणि,
(Extracted from the Book ‘Manohar Padyavali’
Edited by Dr. Harekrishna Meher and published in 1985)
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Poet Manohar Meher
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सीताकान्त-भजन
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सीताकान्त-भजन
(रचयिता - कवि मनोहर मेहेर )
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सीताकान्त कोदण्डपाणि,
बारे घेन दीन जन दयिनी ।
तुम्भ श्रीचरण
न पाइ दर्शन
थय नाहिँ चित्त दिबा यामिनी ।। (0)
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बारि मध्ये थाइ बारण
बारम्बार गला शरण ।
रथांग पेषिल
अराति नाशिल
बनपति-अरि रखिल आणि ।। (1)
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सूर्य्य-सुते होईल मित
इन्द्र-सुत कल निपात ।
हर-अरि-प्रिया-
तात तुम्भ माया
न पाइले अन्त के पारे जाणि ।। (2)
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प्रभु क्षिति-सुताङ्क हेतु
सिन्धु मध्ये बान्धिल सेतु ।
बन-सुत-सुत-
सुत-नाति नाशि
ता भ्राताकु देल ता योषामणि ।। (3)
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भानु-वंशी कुल-शेखर
भानु-सुत-भयुँ उद्धर ।
भव-भय हर
आश्रित जनर
नब पञ्च पुरे अट कारेणि ।। (4)
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कञ्ज-नेत्र खण्ड दुरित,
मुहिँ तब भृत्यर भृत्य ।
दास अपराध
छेद आदिकन्द
कहे मनोहर योड़िण पाणि ।। (5)
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(" मनोहर पद्यावली " पुस्तकरु गृहीत ।)
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(Extracted from the Book ‘Manohar Padyavali’
Edited by Dr. Harekrishna Meher and published in 1985)
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